ञ’पर क्या लिखूं
ञ’पर क्या लिखूं
——————–
प्रतिदिन कुछ नया सिखता हूँ,
कभी कभी अड़बड़ लिखता हूं।
आज कविता लिखने में लाचार दिखूं,
समझ में नहीं आता ‘ञ’ पर क्या लिखूं।
न ञ से शब्द शुरु हो न ही ञ से अंत,
पर शब्द निर्माण में ञ प्रयोग अत्यंत।
चवर्ग में ‘ञ’ पांचवे स्थान पर बनी है।
वस्तुतः वर्ण के साथ ञ एक ध्वनि है।
ञ अकेले कुछ न करता न एकल रह पाता।
आधा ‘ञ’ व आधा ‘ज’ मिल ‘ज्ञ’अक्षर बन जाता।
अर्थ अनर्थ हो जाये तत्क्षण ञ को लीजै खींच।
साझे की खेती है इसकी रहता सदैव बीच।
गांव के शिक्षक, वहीं का मैं भी,
शिक्षण मिला अधूरा,
स, श, ष, का भेद न पाया,
उच्चारण न हुआ पूरा।
उसी तरह न जाना क्या है
ण,ड़,ञ, (आणा,अंगा,इयाँ)।
भ्रम में रहे उन दिनों सारे,
आर्य, ईसाई मियां।
संस्कृत पढ़ा तो विधिवत जाना,
स्वर व्यंजन का मूल्य।
अक्षर का एक उच्चारण है,
सब हैं बहुत अतुल्य।
अब मेरी सब समझ में आया,
कोई अक्षर तुच्छ नहीं।
अब मैं कभी नहीं बोलूंगा,
(ण,ड़,ञ,)….माने कुछ नहीं।