झोपड़ी हो दीन की या फिर हवेली हो।
गज़ल
2122…….2122……..2122…….2
झोपड़ी हो दीन की या फिर हवेली हो।
सब गले दिल से मिलें कुछ ऐसी होली हो।
मुफलिसी बेरोजगारी हार खुद जाए,
मुस्कुराहट से भरी खुशियों की झोली हो।
दिलके या दामन के हों ये फासले अब बस,
अब नहीं दिल चाहता है और दूरी हो।
दिल जिसे मिलना व रँगना चाहता यारो,
या खुदा उम्मीद अबकी बस ये पूरी हो।
कृष्ण गोपी की तरह खोजेंगे रँग देंगे,
हो छुपी चाहे जहाँ राधा सी गोरी हो।
रंग से कोई न रह जाए अछूता अँग,
हर कोई मदहोश हो इक मयकशी सी हो।
रंग कुछ ऐसे चढ़ें सब इस तरह देखें,
जैसे प्रेमी प्रेमिका सपनों की डोली में।
…….✍️ प्रेमी