झोंपड़ी
सर्द हवाओं के
झोकों से
बदन मे सिरहन सी
उठ रही थी ।
तेज बारिश के
छीटों से
कंपकंपी भी अब
होने लगी थी ।
कड़कते बादलों की
गर्जना से
झोंपड़ी की छत भी
हिलने लगी थी ।
आशियाना उजड़ने की
दहशत से
जिन्दा रहने की आस
टूटने लगी थी ।।
राज विग 03.10.2020.