झोंका हवा का आप का पैग़ाम ले उड़ा
झोंका हवा का आप का पैग़ाम ले उड़ा
लबरेज़ मय का हाथ से वो ज़ाम ले उड़ा
रग़बत ने आपकी ही, हमें रोक कर रखा,
दिल का गुरेज़ रात का अंजाम ले उड़ा
इतना ख़फ़ा न हो, कि ख़फ़ा हम भी हों चलें
दिल ये वफ़ा-ए-इश्क़ का इल्ज़ाम ले उड़ा
रिंदों में मय पीने की अदा भी बदल गई
इक था ‘जिगर’ जो रिंद का हंगाम ले उड़ा
साक़ी तिरे मैं-खाने की तंज़ीम है ग़लत
इक ग़म-गुसार ग़म को सर-ए-आम ले उड़ा
बदनाम ही सही जो मिरा नाम था चला
अहल-ए-जुनूँ को फिर जो मैं नाकाम ले उड़ा
ज़मज़म के साथ रात पी मय, और सुब्ह-दम
क़ायम हुआ के मंसब-ए-दुश्नाम ले उड़ा