झूला झूलें…
झूला झूलें बृज में ,
कुँअर कन्हाई ।
मात यशोदा मंगल गावत ,
लाल लिए उर लाई ।।
छवि राजत अनमोल अनोखी ,
अतुलनीय जग माहीं।
ब्रह्मा विष्णु शिव अरु सनकादिक ,
गुण गावत न अघाहीं।।
शेष शारदा रूप न वरनत ,
थकित पार न पावें।
शब्द अंत हुई जाय मनहि मन ,
नवल शब्द न आवें ।।
गोपी ग्वाल बाल संग खेलत ,
धन्य धन्य बड़भागी ।
तन मन से जे जीव कृष्ण के ,
जन्म जन्म अनुरागी ।।
लघुतम मति कलि ग्रसित कहाँ ते ,
गुण तुम्हरे लिख पाऊँ ।
मन मानत नहीं प्रभु कोरे ,
कागद पर कलम चलाऊँ ।।
✍️सतीश शर्मा ।