झूम-झूम के आया सावन
झूम-झूम के आया सावन
मोह लिया; मनभावन-सावन
मदमस्त हवाएँ; मदमस्त फ़िजाएँ
तन-मन को यह ऋतु महकाए
काली घटाएँ और तड़ित का गर्जन
कर देती है; रोम-रोम का आकुंचन
भीनी-भीनी; झीनी-झीनी बूंदों के संग
विकराल रूप में बरसा सावन।
धड़ाधड़-धड़ाधड़ बादल हैं; गरजें
झमाझम-झमाझम बादल हैं; बरसें
सन-सनासन चली; ये सर्द हवाएँ
बहकी सी लगती है; ये महकी फ़िजाएँ
लबालब भरे हैं नहर,नदी,पोखर
खेतों में हरे-भरे फसल लहलहाते
सावन की पहली बारिस को पाकर
आनन्दित हुए खग, नर व उपवन।
ग्रीष्म से व्याकुल थी, प्यासी ए धरती
बारिस में भीगी तो मिल गयी तृप्ति
रोमांचित युगल हैं ; सजे-धजे
पेड़-पौधे हैं, सब हरे-भरे
कजरी, भजन व राष्ट्रगीत का सुनते
बीत रहा; यह लुभावन सावन
रक्षाबन्धन, स्वतन्त्रता दिवस, तीज,
नागपंचमी जैसे पवित्र पर्वों का संगम।
–सुनील कुमार