झूठ बोलना पड़ा
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आज फिर मुझे झूठ बोलना पड़ा।
अर्थात् सच्चाई की मार्ग को छोड़ना पड़ा।
परआत्मा पर बोझ सा बन गया।
क्यों? इतनी छोटी बात पर झूठ बोल गया।
ऐसा सुना है कि, “झूठ बराबर पाप नहीं“।
फिर याद आया,
जो झूठ किसी के भलाई के लिए बोला जाये,
वह” झूठ “झूठ नहीं।
ऐसा गीता में गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है।
कभी कभी झूठ बोलने में भी भला है।
इसी बात पर धर्मराज युधिष्ठिर झूठ बोल गए।
अर्जुन शिखंडी की आड़ में भीष्म को मार गए।
स्वयं भगवान विष्णु कोअमृत के लिए,
मोहनी रूप धड़ना पड़ा।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को झूठ छल से,
बाली को मारना पड़ा।
तो भाई मैं भीअपनी भलाई के लिए,
घर की शान्ति के लिए,
भगवान श्री कृष्ण के बताए हुए,
इस ‘लुप होल’ का फायदा उठाते हुए,
जो झूठ बोल गया तो,
क्या पाप कर गया?
झूठ ही एक मात्र ऐसा है,
जिस परआप,
पूर्णतया विश्वास करते हैं।
“झूठे का मुँह काला,
सच्चे का बोलबाला
और“ सत्यमेव जयते”
तो बस मन बहलाने को कहते हैं।
जबकि चारों तरफ झूठ की जय-जयकार होते हैं।
कहने को तो कह देते हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं।
पर भाई झूठ को चलने की क्या जरूरत है।
वो तो एयर कन्डिसन कार में घूमता है।
हवाई जहाज में उड़ाता है।
तो आओ सच की समाधी पर,
फूल की माला चढ़ाएं
और “सत्यमेव जयते” के झूठे नारे लगाए।
-लक्ष्मी सिंह ? ☺