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31 Jul 2020 · 1 min read

— झूठ की बुनियाद —

चल रही है जिंदगी
एक झूठ को पाले हुए
तन ही जब अपना नहीं
क्यूँ यह भ्र्म है हर यहाँ पाले हुए
चलता फिरता आदमी
पल में रूखसत हो जाता है
जो सामने बैठा था पंछी
अगले पल उड़ ही जाता है
जिंदगी एक ख्वाब है
आँख खुलते ही नीरस हो जाती है
न जाने क्यूँ रोज
तिल तिल कर के तड़पाती है
जीने का मन न हो तो भी
जीने को विवश कर जाती है
आदमी तेरी औकात कहाँ है
सच का सामने करने की
ये तो हम सब को
अंत में मौत ही बताती है

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 555 Views
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