झूठ की दुनिया
झूठ को सच मानते
सच को झूठ बताते लोग यहां
कीमत नहीं रहा उनकी अब ,
जो सच को स्वीकार करते यहां
तुम ढूंढ रहे सच की पुजारी कहां
बन रही झूठ की फौज यहां
कहते हैं सभी झूठ मैं सुन सकता नहीं
फिर भी वही लोग झूठ बोलते यहां
कहते हैं सच बोलना सीखो
फिर क्यों उसी इंसान से सच सुना जाता नहीं यहां
सच तो होती ही है कड़वी
इसलिए झूठ को सब सराहे यहां
जहां को सुधारने चले हैं लोग यहां
खुद को सुधारे अब कौन यहां
अपनों से भी पराये जैसे पेश आते लोग यहां
और वही पराये को अपना बनाने की बात करते यहां
अजीब है ये दुनिया और लोग यहां
शायद कभी किसी को समझ न आये ये जहां