झूठ का बीज
शब्द शहद सा बरसे ग़र तो
सावधान होकर तुम सुनना
कटु सत्य के फिर आगे
चिकनी बातों को क्योंकर सुनना
चिकनी – चुपड़ी बातों के पीछे
घात लगाए अंतस बैठा है
ग़र सत्य को पकड़ लिए तो
पीछे उदास अपयश बैठा है
इसीलिए होकर चैतन्य रहो
सत्य कहीं पर खो न जाए
तुम्हारे उपजाऊँ अंतस में
झूठ का बीज कोई बो न पाए
अंतस की मिट्टी को ऐसे बदलो
के झूठ फरेब के खातिर हो बंजर
किसी के चाहे कभी उगे न
चाहे कितने बीज कोई बोए निरंतर
दुनियाँ ने अक्सर दुनियाँ को
दुनियादारी है गलत सिखाई
आँख पर है भ्रमजाल का पर्दा
ठीक -ठीक कैसे दे दिखाई
चलो अब तो वह कार्य करो
के दिल- दिमाग़ अब लड़ न पाए
बीज ग़र कोई बो दे भी तो
वह थोड़ा भी बढ़ न पाए
-सिद्धार्थ गोरखपुरी