झूठों की मंडी लगी, झूठ बिके दिन-रात। झूठों की मंडी लगी, झूठ बिके दिन-रात। झूठे मुँह से हो रहीं, झूठी-झूठी बात।। ✍️अरविन्द त्रिवेदी