झूठे ही मुस्काता हूँ
झूठे ही मुस्काता हूँ
ऐसे गम भुलाता है।
चटकारे से सूखी रोटी
प्याज नमक संग खाता हूँ ।
झूठे ही मुस्काता हूँ ।
यह भी एक जीत ही है
गिरता हूँ उठ जाता हूँ ।
झूठे ही मुस्काता हूँ ।
क्या गम क्या सुख क्या जीवन है
भेद नहीं कर पाता हूँ ।
झूठे ही मुस्काता हूँ ।
जिसको सब कहते दुर्भाग्य
उसे ही ढोता जाता हूँ
झूठे ही मुस्काता हूँ ।
किसे दिखाए किसे बताए
क्या क्या खोए क्या पाए
दिल के अंदर दबाता हूँ ।
झूठे ही मुस्काता हूँ ।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र