झूठा प्यार।
जिस्म की भूख तुम्हारी आज किसी के तन से हैं
लेकिन प्यार किसी से…
और मन किसी के साथ होता है
आखों में हवस दिखती है अब तुम्हारे
अरे लेकिन प्यार हमेशा साफ होता हैं ।
जिस जवानी से प्यार तुम करते हो
अरे वोह जवानी तो, दिन चार की होती है
जिसे चाहा खुदा से भी ज्यादा…
अरे वोह कमबख्त आज किसी के साथ सोती है
सब कुछ लूटा दिया जिस पर
वोह किसी से आंखे चार करती है
बैठे हैं बिन हथियार के जंग में
आज वोह पीछे से वार करती हैं।
उसकी यादों के ज़ख्म है दिल में
अरे वोह कुरेदने का काम करती हैं
बैठे थे जिसके पास कभी दिल लेके
आज वोह दिलो का व्यापार करती है।
रखती है हर दिल को जूती की नोक पर
अरे वोह बीच बाजार रखती हैं
अब प्यार से भी ज्यादा वो व्यापार करती हैं
सोनित को संभाल मेरे यार…
अब उसके प्यार को वो बदनाम करती हैं।
लेखक सोनित प्रजापति।