झुलस
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धरती झुलस रही अब आओ , हे मेघा अब तो जल बरसाओ
अब तो दया करो हे अम्बर , काली घटा से नीर ले आओ
सुख गये हैं तालब बाबड़ी, सूख गई है दूब और दुदधी
निरीह पशु जल को खोजते , जलते पैरों को अब तो भिगाओ
कहे पंखुरी कंठ है सूखा , कहें गौरिया लगता सब फीका
घास पूस निष्प्राण हुई है , ओ बदरा अब तरस तो खाओ
जल बिन सब निष्प्राण हुए हैं, ईंट और पत्थर अभिशाप हुए हैं
तरुवर के पत्ते विलख गये हैं, ओ कारे मेघा मत तरसाओ
लू लपट की है मारा मारी , तन को ज्वर ताप से भारी
अब तो लगाओ एक वृक्ष सब, शीतल कोई बयार ले आओ
करो वृक्ष का भू में रोपण , मिट पायेगा त्रस्त ये क्रन्दन
अपनी धरती स्वयं बचाओ , फिर से अपने गाँव सजाओ
धरती झुलस रही अब आओ , हे मेघा अब तो जल बरसाओ
अब तो दया करो हे अम्बर , काली घटा तुम नीर ले आओ