झुमका
जिस प्रकार
ईश्वर निर्मित यह ब्रह्मांड है
और इस ब्रह्मांड में चाँद-तारे हैं,
ठीक उसी प्रकार
मेरी कल्पनाओं के ब्रह्मांड में
ये तुम्हारे कान का झुमका
उस चाँद के समान है…
तथा इस झुमके में जड़ित
अनगिनत मोती माणिक
आकाशगंगा में स्थित असंख्य तारे हैं।
जब तुम्हारी खुली जुल्फें
धीरे-धीरे सरकती हुई
कानों को ढकने लगती है,
तो ऐसा प्रतीत होता है
मानो कृष्ण पक्ष का आरंभ हो गया हो..
और चांद की चांदनी धीरे-धीरे कम
और तारे लुप्त होते जा रहे हो,
जब तुम्हारी जुल्फें झुमके को
पूर्णतः अपने आगोश में ले लेती है
तब होती है अमावस्या की काली रात…
और पुनः जब तुम
उंगलियों से अपनी जुल्फों को
कानों के पीछे फँसाती हो
तब आरंभ होता है शुक्ल पक्ष का
और फिर होती है पूर्णिमा की रात…