झुनझुना
झुनझुना सा लोकतंत्र
जितनी मर्जी, जैसी मर्जी
वैसे ठोक कर बजाओ
यह सामूहिक हास्य है,
हंसता भी मै ,
हंसा भी मुझ पर जा रहा है,
मूक दर्शक सा निहारता
मतदान की हत्या
सियासत की गर्मी इस कदर है
कि तराजू का पलड़ा भारी नहीं,
वो तो पिघल रहा है
साँचे तैयार हैं रोपने को
सुबह तक सांचे में सब ढल जायेगा
बड़े चाव से मताधिकार दिया है
ये मजाक अच्छा है
हां !झुनझुना तो बजेगा
बस धुन बदल- बदल कर
पांच साल वाला झुनझुना
ढाई साल में ध्वस्त पड़े
तो ताजुब न हो, समझो चाइनीज़ था
जुगाड़ तो हमारी परम्परा है
तोड़ मरोड़, खींचतान ,छीन-डपट कर
जैसे -तैसे, नया झुनझुना बना ही लेंगे
अाखिर, झुनझुना तो निहायत आवश्यक हैं
बजने को तैयार मैं, बजाने को तैयार वो