झुकता आसमां
** झुकता आसमां **
न जाने किन उम्मीदों से मिल जाता हूं ,
बस जिंदगी यूं ही मैं जी जाता हूं ।
पल पल बदलती ज़िन्दगी के,
हर दौर से मैं मिल जाता हूं ।
माना वक्त फिसल जाता हैं ,
ताजगी का दौर गुजर जाता है ।
ढलती हर शाम में अब मैं ढल जाता हूं
मुश्किलों से अब मैं उबर जाता हूं ।
न जाने किन उम्मीदों से मिल जाता हूं ,
बस जिन्दगी यूं ही मैं जी जाता हूं ।
हौसले माना आसमां दिखलाता है ,
नसीब भी हर बात समझाता है .
तकदीर की हर बात अब मैं समझ जाता हूं ,
बस जिंदगी यूं ही मैं जी जाता हूं ।
-शेखर सिंह