झुंड
झुंड ही तो है…
ख़्वाबों का ख़्यालों का
जवाबों का सवालों का
अधूरी मुलाक़ातों का
अनचाही सौग़ातों का
रिश्तों का कुछ वादों का
पाक नापाक इरादों का
अधूरे बिखरे सपनों का
भरोसा तोड़ते अपनों का
सच्ची झूठी बातों का
करवट बदलती रातों का
उलझे सुलझे विचारों का
काल्पनिक आकारों का
यादों के पिशाचों का
दिल के टूटे काँचों का
झुंड ही झुंड चारों ओर
अथक मंडराता करता शोर
झुंड के चक्रव्यूह बीच
खड़ा हूँ बेबस आँखें मींच
निकास का नहीं कोई द्वार
कैसे होगी अब नैया पार
क्या फिर महाभारत होगी
झुंड के हाथों हत्या होगी
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया