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16 May 2023 · 2 min read

झील

बाल कविता……….

झील!

सूखी नदियां ताल तलैया,जोहड़ कुएं बावड़ी।
सूखे से तपती धरती पर बूंद एक भी नहीं पड़ी।।

चिंतातुर मंगल वनवासी, पानी बिन घबरा रहे।
बड़े बुजुर्ग बैठ कर सोचें, तनिक समझ नहीं पा रहे।।

जल बिन जीवन नामुमकिन है, बात समझ ली सबने।
छोटे बड़े जीव जंतु और वृक्ष लगे सब थकने।।

सारा वन नीरस उदास हो,डूबा घोर निराशा में।
दिन- दिन आशा लगी छूटने,भाव रहे न भाषा में।।

वन का राजा भी चिंतित हो,बैठ गया निज महल में।
रानी से पानी की पूछी, क्या करिएगा पहल में!!

सिंहनी बड़ी विदुषी रानी,राजा को समझाया।
आसानी से जल मिल जाए,ऐसा मार्ग बताया।।

मार्गदर्शिका से ली शिक्षा, सिंह का अब विश्वास बढ़ा।
जल से जीवन यापन होगा,सद प्रयत्न का जुनूं चढ़ा।।

सुबह सुबह ही सिंहराज ने सभा बुलाई घाटी में ।
जंगल में करवाई मुनादी निकले सोना माटी में !!

भालू आया , बंदर आया, वन मानुष , लंगूर आया।
लम्बू जिराफ , शीतू सियार , कालू भैंसा,खच्चर आया।।

चिमनू चीता , चतुर लोमड़ी, बूढ़ा बैल मिनाती आया ।
तारू तेंदुआ , सपलू सुअर, मैमथ मोटू हाथी आया।।

भूरा बिल्ला , पपलू पिल्ला, गबरू घोड़ा , रामू गौरिल्ला आया।
हेमू हिरण , नीली गाय लम्बकर्ण खरगोश आया।।
चपलू चूहा , छलकू सेही, गीलू गिलहरी,ननकू नेवला आया।
गोपी गधा , धीरू जेब्रा, बबलू बाघ दौड़ता आया ।।

भोला बिज्जू,फजलू ऊँट, मजनूं मेढा,बकरा आया।
बन बिलाव और गपड़ू गीदड़,लालू लकड़बग्घा आया।।

कोई गैंती , कोई कुदाल कोई फावड़ा , सब्बल लाया।
जबरू जरख कुल्हाड़ी, लाया बारहसिंगा सिंगी लाया ।।

नाग केंचुली लेते आया, मरु बिल्ला सीढ़ी लाया। किसी के हाथ, हथौड़ा छैनी कोई लकड़ी पैनी लाया ।।

लगे खोदने सभी धरातल, अहा! मिलेगा सोना ।
सिंहराज की चाल अनोखी, जल बिन पड़े न रोना ।।

झील बन गई बड़ी अनोखी, रिमझिम बारिश घिर आई।
भरी लबालब झील नवेली,जंगल में खुशहाली छाई।।

विमला महरिया “मौज”

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