झील सी तेरी आंखें
झील सी तेरी आंखें
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कमल पंखुड़ी सी लगती हैं तेरी आंखें,
करूणा और श्रद्धा से भरी हैं तेरी आंखें
कभी गीत, कभी प्रीत की कविता सुनाती,
कभी मुस्कुराती,शरारत करती तेरी आंखें।
देखकर इन आंखों को मन डूबना चाहे,
गहरी हैं समंदर सी, चंचल तेरी आंखें।
अब इनकी भला क्या और मिसाल दूं,
लगती हैं खूबसूरत बे-मिसाल आंखें।।
जाने क्या बोलती आंखें हिरनी सी चपल।
कुछ तो कहतीं हैं,झील -सी तेरी आंखें।
मन करता है डूब जाऊं इन आंखों में,
लगती सागर सी गहरी तेरी नीली आंखें!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर