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15 Dec 2020 · 1 min read

झील सी आंखें

याद तुम्हारी
बैरन ठहरी
नहीं देखती
दिन दुपहरी
आ जाती है
निशि दिन पल-पल
धीमे-धीमे चुपके-चुपके
छू जाती है
मन की देहरी
लाख मनाता
चंचल मन को
भूल अरे
कुछ पल कुछ छण को
फिर आएगी
सांझ सुनहरी ।
लेकिन तुम बिन
सब कुछ सूना
आ जाओ अब
खो जाने दो
झील सी आंखें
गहरी-गहरी ।

अशोक सोनी
भिलाई ।

Language: Hindi
3 Likes · 9 Comments · 549 Views

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