झील में प्रतिबिंब
** गीतिका **
~~
झिलमिलाती कल्पनाओं का अजब संसार।
झील में प्रतिबिंब बन ज्यों हो रही साकार।
सुन रहे आहट कदम की हम सभी चुपचाप।
पुल बनी हमको लिए है जा रही उस पार।
रुक नहीं पाते कदम बढ़ते यहां अविराम।
राह में दिखते नहीं बिखरे हुए कुछ खार।
देखिए तो नित्य हर पल है बहुत संघर्ष।
हम यहां सब जिंदगी में चाहते हैं प्यार।
डूबकर गहराइयों में जा रहा है कौन।
बस वही है पा सका मोती रजत हर बार।
सत्य सब होता नहीं है सामने का दृश्य।
कर्म अब करते रहो बस जीत हो या हार।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य