झांसी की रानी
“गर्व है हमको इस धरती पे जिसने जन्मा रानी को ,
शब्दकोश भी छोटे रह गए उसकी गाथा गाने को !
क्या अदभुत शौर्य था उनका अदभुत उनकी शक्ति थी ,
भयग्रस्त कर देती शत्रु को वो सत्तावन की नायक थी !
हाथों में जिसके तलवार और लगाम दातों में थी ,
आगे से करती शत्रु पे वार और पुत्र को पीठ पे बाँधी थी !
घोड़े पे होके सवार वो स्वयं मृत्यु बनकर आयी थी ,
रक्षक बनकर इस धरती का सरंक्षण करने आयी थी !
वीर शिवानी थी वो और काली का भी रूप थी ,
जिसकी तलवारों से कम्पित गोरो की भीड़ थी ,
झांसी की रानी वो इतनी हिम्मत वाली थी ,
घायल अवस्था में भी रणचंडी बन गर्जी थी !
वार पे वार सहकर भी उसने सामर्थ्य न खोया था ,
उसका वो विकराल रूप देख शत्रु दल थर्राया था !
मरते मरते भी रानी ने ऐसा विध्वंश मचाया था ,
देख उसका विकराल रूप ह्यूरोज भी घबराया था !
रोम रोम पुलकित हो जाता इनकी अमिट वीरता से ,
ये थोड़ी सी पंक्ति समर्पित मेरी वीरों की गाथा से !”
(पूजा सिंह )