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25 May 2024 · 1 min read

झरोखों से झांकती ज़िंदगी

अपने दरीचे से जब मैं

देखती हूं दुनियां

तो लगता है जैसे कि

कि बिखरीं हैं यही बस

सारे जहां की खुशियां

हां कभी कभी

घनघोर घटाओं की गर्जन से

खडकतीं हैं खिडकियां

पर हसीं लगतीं हैं जब

बयार संग बहकती हैं खिडकियां

आते जाते पंछियों का कलरव

उनके पंखों पर रंगों का वैभव

सामने दूर क्षितिज की मुस्कान

हरियाली के झोंकों का आह्वान

सहर के सूरज का गुणगान

और निशापति का नीरव विधान

क्या सुनाऊं मैं रौशनी की चमक

या मधुर महक का बयान

बारिश से धुले घरों की रवानगी

या लहलहाते सागर की बानगी

झरोखों से झांकती है जिंदगी

ये खुशनुमा लम्हों की बंदगी.

©️ रचना ‘मोहिनी’

1 Like · 64 Views
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