झरोखों से झांकती ज़िंदगी
अपने दरीचे से जब मैं
देखती हूं दुनियां
घनघोर घटाओं की गर्जन से
खडकतीं हैं खिडकियां
पर हसीं लगतीं हैं जब
बयार संग बहकती हैं खिडकियां
बारिश से धुले घरों की रवानगी
या लहलहाते सागर की बानगी
झरोखों से झांकती है जिंदगी
©️ रचना ‘मोहिनी’