झरोखा
जिन्दगी के हर पहलू मे मैने तुझको मुडकर देखा
जैसे किसी बन्द कमरे मे रोशनी का एक झरोखा
सब करते है इन्तजार आये तारो से सजी रात
फैले चांदनी ,बहे ठन्डी हवा का झोकां
मगर हाथ जोडकर मै करती हूम नमन
निकले न कभी चांद यहां का
जिसको चाहिए रोशनी जितनी,सहनी होगी तपिश भी उतनी
ये सच है मैने जान लिया,इस रहस्य को पहचान लिया
क्योकि हालातो की अग्नि मे मैने आहुति बनकर देखा
जैसे किसी बन्द कमरे मे रोशनी का एक झरोखा