झरने और कवि का वार्तालाप
पर्वतो की गोद से निकल,
एक झरना ये सोचने लगा।
पता नही मेरे भाग्य में क्या लिखा,
क्यू मै पर्वतों से अब बिछड़ने लगा।।
सोचते सोचते वह आगे बढ़ा,
पर्वतों से नीचे वह आने लगा।
देखकर उसे एक युगल जोड़ा,
उसके नीचे मस्ती से नहाने लगा।।
इसके बाद वह कुछ आगे बढ़ा,
और पत्थरों से वह टकराने लगा।
इसकी चीखो की आवाज को,
एक कवि ध्यान से सुनने लगा।।
सुनकर झरने की चीखों को,
कवि के मन में भाव उभरने लगे।
और कलम कागज निकाल कर,
उस पर कविता लिखने लगा।।
कवि भी प्रेम का प्यासा था,
उसको देखा वह रोने लगा।
झरने की इस पीड़ा को देख,
आंसुओ से कागज भिगोने लगा।।
कवि की यह स्थिति देखकर,
झरना भी अब बिलखने लगा।
कवि ने पूछा झरने से,
तुमको ये क्या होने लगा।।
झरना बोला,कवि से रोता हुआ
दोनो ही हम प्रेमिका से बिछड़ गए,
तुम कविता से,में सरिता से
पुर्व जन्म में थे बिछड़ गए।।
कवि बोला,झरने से रोता हुआ,
सरिता से तेरा मिलन कराऊंगा,
तेरे मिलन के बाद ही मै
अपनी कविता से मिल पाऊंगा।।
इस तरह से झरने का सरिता से,
कवि का कविता से मिलन हो जाता है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम