—- झमेला —-
कभी कभी लगता है जैसे
हम न जाने क्यूँ जिए जा रहे हैं
जहर जिंदगी का बस रोज
पिए ही जा रहे हैं !!
दफ़न कर के न जाने
कितने ही अरमानो को रोजाना
बेबसी से खुद पर न जाने
कितने ही जुलम सही जा रहे हैं !!
तकदीर तो बनती है बनाने से
ऐसा न जाने कितने लोगों ने कहा
पर हम तकदीर को बनाने में
न जाने कितने सितम सही जा रहे हैं !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ