*”झंझट”*
बड़का काका बड़का काका कहाँ गए। जल्दी से तैयार हो जाइये। वे लोग बस पहुँचने ही वाले हैं। बाहर से रोहित ने आवाज़ दी।
हाँ-हाँ मैं पूजा घर में हूं, जल्द ही आता हूं। तू जा एक बाल्टी पानी और जग दरवाजे वाले बरामदे पर रख दे।
रमेश बाबू (बड़का काका) पूजा की थाली हाथ में लिए ईश्वर से प्रार्थना करते है कि हे भगवान इस दिन का इंतज़ार बड़े समय से था, आज मनोकामना पूर्ण करना।
बाहर रोहित बाल्टी लेकर जल्दी से नलकूप पर चल देता है।
रमेश बाबू तीन भाई हैं। रमेश बाबू के अलावे सुरेश और महेश।
रमेश बाबू को दो लड़का ही है। मोहित और सोहित। मोहित बैंक में जबलपुर में काम करता है और अपने परिवार के साथ वहीँ रहता है। सोहित बंगलौर में इंजिनियर है। वो भी अपने परिवार के साथ वहीँ रहता है।
सुरेश बाबू को एक लड़का रोहित और दो लड़की मालती और शालनी है।
महेश बाबू को दो लड़का अमित और सुमित और एक लड़की आरती है, जो अभी दस साल की है।
रिटायर होने के बाद रमेश बाबू गाँव में ही रहते है। तीनों भाइयों में अटूट प्रेम है। दोनों भाई बिना रमेश बाबू को पूछे कोई काम नहीं करते हैं।
रोहित पानी की बाल्टी और जग दरवाजे वाले बरामदे पर रखते हुए हर्ष और विस्मय के कौतूहल से भरा है।
बरामदे पर कुर्सियाँ और मेज़ लगा हैं, मेज़ पर कालीन बिछी हुई है। एक गुलदस्ता भी रखा हुआ है, जिसमें से प्लास्टिक के फूल भीनी-भीनी खुशबू बिखेर रहे हैं।
सुरेश बाबू अपने आप को बांध कर रखें हुए हैं। कब नयन छलक जाये पता नहीं। इसी उथल-पुथल में घर के अंदर-बाहर कर रहे हैं।
महिलाएँ तरह-तरह के भोजन और पकवान बनाने में व्यस्त हैं। बच्चे टहल कर-कर के थक चुके हैं। फिर आज उनका आनंद देखते बनता है।
बस शरमाई और सकुचाई है तो मालती। जिसे आज लड़के वाले देखने आ रहे हैं। पिछले चार बार लड़के वाले उसके श्याम रंग को देख कर विवाह से ना कर चुके हैं। छब्बीस की उम्र में भी वो घर बैठी है।
पिता सुरेश बाबू कितनी बार कह चुके है कि कब इस “झंझट” से छुटकारा मिलेगा। ये बात मालती को और अंदर-ही-अंदर खाये जा रही है।
बाहर गाड़ी की आवाज़ आयी।
रोहित- पिताजी वे लोग आ गए।
सुरेश बाबू- जा जल्दी से छोटका काका को भी आगवानी के लिए बुला ला।
सुरेश बाबू- आइये-आइये। आपका स्वागत है। आने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई?
महेंद्र प्रसाद(लड़के के पिता)- अजी नहीं-नहीं कोई कठिनाई नहीं हुई।
आगंतुकों में महेंद्र प्रसाद के आलावे लड़के की माँ रेखा देवी, बहन सुरुचि और चाचा सुरेंद्र प्रसाद हैं।
लड़का(राजेश) एक सरकारी दफ्तर में लेखापाल का काम करता है।
महेश बाबू कुर्सियों को सामंजित कर रहे हैं।
रोहित जग ग्लास में पानी लेकर तैयार है।
महेश बाबू- आइये सभी लोग आकर बैठिये।
सुरेश बाबू- भैया जल्दी आइये, वे लोग आ गए हैं।
रमेश बाबू झटपट तैयार होकर दरवाजे वाले बरामदे पर पहुँचते हैं।
नमस्कार-पाती एवं एक-दूसरे का परिचय होता है। इतने में अमित और सुमित शरबत और चाय की ट्रे लेकर आ गए।
महेंद्र प्रसाद- अरे मैं शरबत नहीं पीता, मुझे मधुमेह है। डॉक्टर ने सख्त परहेज़ रहने को कहा है।
रमेश बाबू- अरे महेंद्र जी एक-आध बार पीने से कुछ नहीं होता, थोड़ा चीनी कम करवा देते हैं। (माहौल में ठहाका गूंजा)
महेंद्र प्रसाद- अजी आपसे बातों में कौन जीत सकता है। आप ठहरे रिटायर हेड मास्टर।
महेश बाबू- राजेश बाबू नहीं आये?
महेंद्र प्रसाद- उसे दफ्तर में कुछ जरुरी काम आ गया था, और उसका तो कहना है कि हमलोगों की मंजूरी में उसकी भी मंजूरी है।
इतने में आरती आकार सुरुचि को अंदर ले जाती है।
इधर-उधर की बातें और हँसी ठिठोली से माहौल खुशनुमा बना हुआ है।
सुरेश बाबू अंदर जाकर पत्नी से- अरी ओ मालती की माँ मालती तैयार हुई की नहीं?
हाँ- हाँ तैयार हो गई है। माँ ने मालती की ओर देखते हुए कहा।
सुरेश बाबू के मन खलबली सी मच रही है, क्या कहें, क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है। बस सब कुछ हो रहा है। इसे उधेड़बुन में फिर वो बरामदे पर पहुँचते हैं।
सुरुचि मालती को देख कर कुछ पल के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ हो गयी। परंतु अगले क्षण उसके व्यवहारिक ज्ञान, किताबी ज्ञान, सरलता को देख कर सहज हो गयी। वो अपने भाई को जानती थी। जिसे ऐसी ही लड़की चाहिए थी।
बाहर राजेश की माँ कह रही है- रंग रूप में क्या रखा है। व्यवहारिक हो, बड़ों का सम्मान करें, छोटों से प्यार करें। ऐसी ही लड़की मेरे बेटे को चाहिए।
यह सुन परिवार के सभी सदस्यों को लगा जैसे मरुभूमि में कहीं से जलधारा प्रवाहित हो गई हो।
इतने में मालती चाय की ट्रे लिए बरामदे पर आती है।
रमेश बाबू- आओ बेटी आओ! बड़ों के चरणस्पर्श करो।
मालती बड़ों को प्रणाम कर एक कोने में नैन झुकाये मौन खड़ी हो जाती है।
रेखा देवी(लड़के की माँ)- मालती बड़ा ही सुन्दर नाम है। आओ बेटी मेरे पास बैठो। मालती सकुचाई सी आकर बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई।
बच्चे अंदर काफी शोरगुल कर रहे हैं।
मालती से राजेश के चाचा सुरेंद्र प्रसाद ने कई सवाल किए। जिसका उत्तर मालती ने बखूबी दिया। आखिर मालती भी तो स्नातकोत्तर है।
रूप की श्यामलता को छोड़ बाँकी गुणों से परिपूर्ण मालती को देख सभी गदगद हैं।
महेंद्र प्रसाद- मुझे मालती के रूप में बहु पसंद है। हम सब के हिर्दय और घर का जो कोना खाली है मालती उसे भर देगी।
यह सुनते ही सुरेश बाबू जो अब तक अपने आप को बांधे हुए थे, भाव-विभोर हो गए। उनके आँखों से अश्रु की धाराएँ बह निकली। मानों कह रही हो कि आज इन्हें उन्मुक्त कर दो। आज “झंझट” जो निपट रहा था।
रमेश बाबू- सबों का मुँह मीठा कराओ। आज अतिथि के रूप में नारायण स्वंय हमारी लक्ष्मी को अपना रहे हैं।
मालती का चेहरा देखते ही बन रहा था। वह अंदर-अंदर हर्षित भी थी और ख़ुशी इतनी देर से आयी इस पर खिन्न भी।
मालती की माँ- मैं न कहती थी भगवान् के घर देर है, अंधेर नहीं।
इतने में भोजन का आसन भी लग गया। आँगन वाले बरामदे पर। सभी ने भोजन के लिए असहमति जताई। परंतु रमेश बाबु कहाँ मानने वाले थे।
पूरा परिवार आव-भगत में तल्लीन हो गया।
भोजन के उपरांत आगंतुकों ने विदा माँगी। सादर नमस्कार कर सभी को विदा किया गया।
सभी इतने हर्षित और प्रफुल्लित थे मानों आज होली और दिवाली एक साथ हो।
सुरेश बाबू- भैया आज मुझे अपार ख़ुशी है कि आज मैंने इस “झंझट” से पार पा लिया।
रमेश बाबू- खबरदार! बेटी को अगर “झंझट” कहा।
वो अपने कर्म खुद लिखवा के आती है। विवाह से पहले माँ-बाप के लिए, विवाह के बाद पति के लिए और बच्चा होने पर बच्चों के लिए। हमेशा दूसरों के लिए जीनें वाली को तुम “झंझट” कहते हो।
सुरेश बाबू नज़रें झुका कर बुरी तरह झेंप गए।
अंततः विवाह का दिन तय हुआ । तय तिथि को विवाह संपन्न हुआ। विदाई के समय पूरा परिवार अश्रुपूर्ण विदाई दे रहा था।
और सुरेश बाबू के मन में एक ही बात गूँज रही थी कि आज एक “झंझट” निपट गया।।।
✍️ हेमंत पराशर