जफ़ा ऐ इश्क का किस्सा सुनाते रह गए सबको ।
ग़ज़ल। किस्सा सुनाते रह गए सबको ।
कुरेदा जख़्म महफ़िल मे दिखाते रह गए सबको ।
जफ़ा ऐ इश्क़ का किस्सा सुनाते रह गए सबको ।।
सकूनत की दवा ख़ातिर महज़ इक आह काफ़ी थी ।
कोई ढाढ़स नही देता बुलाते रह गए सबको ।।
मिला न एक भी बन्दा मिरा दिल थाम लेने को ।
उमरभर आशिकी मे हम मिलाते रह गए सबको ।।
मुझे ही क्यों मिले लम्हे भरे गम बेहयाई से ।
वफ़ा की राह फ़ुर्सत से दिखाते रह गए सबको ।।
मिली हर बार मुझको ही न जाने बेवफ़ाई क्यो ।
दिलों की क़ीमती दौलत लुटाते रह गए सबको ।।
बड़ी मुद्दत से मिलती है जहाँ में प्यार में ख़ुशियां ।
बताते रह गए सबको , मनाते रह गए सबको ।।
छुपाकर आंख मे आँसू भले रोया था मैं रकमिश ।
ग़मो के ज़लज़लों मे भी हँसाते रह गए सबको ।।
राम केश मिश्र