जज़्बा
विरोधियों का झुंड
लगातार दबोचने की ताक में
आस लगाये बैठा ,
फिर भी मैं आराम से
हँसती हुई गुज़र जाती हूँ ,
तब सब चौकते हैं
और एक दूसरे पर
इल्ज़ाम लगाते हैं ,
कि मैंने न सही
पर तुमने क्यों नहीं नोचा ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17 – 05 – 1991 )