जज़्बा- ए- बग़ावत
वो दिल के किसी कोने में छुपा बैठा है ।
जो हमेशा दस्त़क देता रहता है ।
और दबी ज़ुबान में कहता रहता है ।
जगाओ मुझे कब तक तुम ये ज़़ुल्म सहते रहोगे ।
मिटा कर रख देंगे ये ज़ालिम तुम्हारी हस्ती तब तक क्या उन्हीं की करते रहोगे।
हौसले करो ब़ुलंद मिटा के रख दो हर नाप़ाक इऱादे तभी तुम्हारे दिन फिरेंगे ।
और काय़म करो अपना व़जूद तब तुम जो कहोगे वही ये करेंगे।