ज्वालामुखी
ज्वालामुखी
दर्द की सीमा को लांघ कर
कौन है जो गम से घबराता है
उसी को कहते है ज्वालामुखी
जो खामोश होकर भी डर फैलता है।
एक आंच जिसकी पिंघला दे तन को
जो इतनी आग में भी जी पाता है
उसी को कहते है ज्वालामुखी
जो सागर को भी पलभर में पी जाता है।
अवशेषों से भर दे इस धरती को
फिर भी खुद नहीं कभी सो पाता है
उसी को कहते है ज्वालामुखी
जो धरती पर जीवन की पहल कराता है।
©तनहा शायर हूँ