ज्योतिपात
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जले ज्योति,बढ़े ज्योति.अँधेरा बड़ा घना है.
चोटियाँ उठें.उर्ध्वाकार बढ़ें.—विवेक में है गह्वर वृहत..
उज्ज्वल हो आत्मा.फैले ज्ञान.—गर्व हो गया है गौरव.
ध्वनि हो भाषा.शब्द मधुर.—कोलाहल है प्रचंड.
शान्ति हो मुखर.स्वत: तुकांत.—हर आग है उग्र.
जल हों निर्मल.निर्मलता प्रबुद्ध.—आदमी है मलिन.
सत्य हों सुंदर.सुन्दरता ईश्वरीय.—मिथ्या से चुपड़ा है ‘सत्य’.
विचार हो उत्कृष्ट.उत्कृष्टता अर्थनिष्ठ.—प्रदूषित हैं विचार.
शिक्षा हो समझदार.समझ सक्रिय.—और आर्थिक भी हो.
शासक हों दृढ.दृढ़ता कल्याणकारी.—शासन है अति मोहग्रस्त.
मनुष्य हो मानव.मानव मानवीय.—प्रदर्शन है अभी शून्य.
योद्धा हों शांतिप्रिय.शान्ति अहिंस्र.—विध्वंस ही अभी शान्ति.
ईश्वर मिले.मिलना नि:स्वार्थ.—लेन-देन है बहुत.
हवा हो स्वच्छ.स्वच्छता सुवासित.—दम है बेदम.
मन हो कर्मशील.कर्म विरत.—परिणाम में है मन.
संसद हो मंच.मंच अन्वेषक.—अनियत है नीयत.
रास्ते हों निर्णायन.प्रयाण निर्णायक.—ठोकरे और मोड़ हैं बहुत.
प्यार बढ़े.भ्रातृत्व गढें.—कैसी,कैसी घिनौनी घृणा!
उम्र हो महान.महान व्रती. — भोग से है छुब्ध, भोग.
मृत्यु रोये.जीवन ना खोये.—-आने का निमन्त्रण बोये.
आत्मा हों मोह-ग्रस्त.करे मानवीय-मंथन.—–आत्मा है आत्म-मुग्ध.
ग्रन्थ दुहराए.व्याख्या बुझाये.—-बन रहा धर्म-ग्रन्थ.
निन्दा कुछ कहे.कुकर्म ताकि ढहे.—– निन्दा खुद निन्दित.
आलोचना हो स्वस्थ.गौरव न करे ध्वस्त.—-आलोचना अभी क्रोधित.
सूरज उगे.हर अंधकार दिखाए.—-बांट जाता है फ़क्त प्रकाश.
क्रोध का जीवन.अनिष्ट और विध्वंस.—-जितना जिये व्यर्थ.
आनन्द प्रफुल्ल.प्रफुल्लता हो शिव.—तांडव न करे पर,नृत्य.
जीवन,मृत्यु हेतु जिये.हर पल मृत्यु न जिए.—तय है खाली आना-जाना.
दर्पण दिखाए अक्स.अक्स छुपे न छुपाये न.—झुठलाता है बहुत.
रास्ते,मुझे चुने.रास्ते पर चलाये.—-मेरा चुनना,चुनते रहना.
ध्वनि ख़ामोश.अन्दर है द्वंद्व.—-खुद से युद्ध का उद्घोष.
अंधकार है अँधा.ढके कुकृत्य का धंधा.—बारूद फोड़ो.
सामाजिक कर्ज.कर्ज का फर्ज.—-सामाजिकता बढ़े.
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