ज्ञान /प्रेम
बाँँटे ज्ञान “बृजेश” नित, बन अशोक जयमाल |
कमियों पर चिंतन करे दिव्य पुरुष की चाल ||
आत्मा ही परब्रह्म है गूढ-सु ज्ञान बृजेश |
करम-भोज खा देव बन या फिर दनुज नरेश||
प्रेम , प्रेम है, मोह ना, और नहीं संबंध|
कह “बृजेश नायक” सुजन, प्रेम समत्व सुगंध||
बृजेश कुमार नायक