Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Aug 2017 · 2 min read

ज्ञान का भ्रम

जो अज्ञानी व्यक्ति है वह ज्ञानवान व्यक्ति का शत्रु नहीं हो सकता बल्कि जो ज्ञान होने का दिखावा करता है कि मै ज्ञानी हूँ उसका यह भ्रम ही उसके ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु है क्योंकि इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो संसार के ज्ञान रुपी सागर को अपने मन मस्तिष्क में पूर्णतः समाहित कर ले जबकि इस सत्य को नकारते हुए कुछ लोग अपने आप को पूर्ण ज्ञानी मानते हैं और यह भ्रम उनमें इस तरह व्याप्त हो जाता है कि वे जीवन की हर नकारात्मकता को ही सत्य की कसौटी पर कसने का हर असफल प्रयास करते रहते हैं ।
कहने का आशय यह है कि ऐंसे लोग केवल हवाई किले बनाते रहते हैं , चलते हुए स्थिर हो जाते हैं और अचल होते हुए यात्राएँ करते हैं यानि अनवरत आशंकाओं मेंं जीना इनकी आदत और नियति बन जाती है ।
ये लोग अपने आप को ही अंतिम सत्य मानकर चलते हैं इस कारण इनका स्वभाव निरंतर अहंकार की वृद्धि करता जाता है और धीरे धीरे समाज से कटते चले जाते हैं परंतु ये अपने भीतर कभी नहीं झांकते उल्टे समाज को ही दोषी ठहराते हैं ।
ऐंसे लोगों मेंं सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने रावण है जो स्वयं ही अपने आप को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा ज्ञानी मानता था और यह भ्रम उसे समग्र जीवन रहा फलस्वरूप इस भ्रांत धारणा के कारण उसके जीवन में छद्म अहंकार ने प्रवेश कर अपना उत्तरोत्तर विकास किया और यह अहंकार ही उसके पतन एवं विनाश का कारण बना ।
इसलिए वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का यह कथन कि ” ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान नहीं, बल्कि ज्ञान होने का भ्रम है ”
अपने आप में सही एवं प्रमाणित कथन है ।

Language: Hindi
Tag: लेख
6 Likes · 7 Comments · 9007 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*प्यासा कौआ*
*प्यासा कौआ*
Dushyant Kumar
हर घर में नहीं आती लक्ष्मी
हर घर में नहीं आती लक्ष्मी
कवि रमेशराज
जाति-धर्म
जाति-धर्म
लक्ष्मी सिंह
जिंदगी गुज़र जाती हैं
जिंदगी गुज़र जाती हैं
Neeraj Agarwal
जातिवाद का भूत
जातिवाद का भूत
मधुसूदन गौतम
दर्द अपना
दर्द अपना
Dr fauzia Naseem shad
*मूलत: आध्यात्मिक व्यक्तित्व श्री जितेंद्र कमल आनंद जी*
*मूलत: आध्यात्मिक व्यक्तित्व श्री जितेंद्र कमल आनंद जी*
Ravi Prakash
कुंडलिया - गौरैया
कुंडलिया - गौरैया
sushil sarna
तुम आ जाते तो उम्मीद थी
तुम आ जाते तो उम्मीद थी
VINOD CHAUHAN
ये कलयुग है ,साहब यहां कसम खाने
ये कलयुग है ,साहब यहां कसम खाने
Ranjeet kumar patre
मानव पहले जान ले,तू जीवन  का सार
मानव पहले जान ले,तू जीवन का सार
Dr Archana Gupta
3176.*पूर्णिका*
3176.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
* छलक रहा घट *
* छलक रहा घट *
surenderpal vaidya
शंकरलाल द्विवेदी द्वारा लिखित एक मुक्तक काव्य
शंकरलाल द्विवेदी द्वारा लिखित एक मुक्तक काव्य
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
बंगाल में जाकर जितनी बार दीदी,
बंगाल में जाकर जितनी बार दीदी,
शेखर सिंह
दहेज रहित वैवाहिकी (लघुकथा)
दहेज रहित वैवाहिकी (लघुकथा)
गुमनाम 'बाबा'
पुनीत /लीला (गोपी) / गुपाल छंद (सउदाहरण)
पुनीत /लीला (गोपी) / गुपाल छंद (सउदाहरण)
Subhash Singhai
घर के आंगन में
घर के आंगन में
Shivkumar Bilagrami
The destination
The destination
Bidyadhar Mantry
In present,
In present,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
फितरत दुनिया की...
फितरत दुनिया की...
डॉ.सीमा अग्रवाल
नशा के मकड़जाल  में फंस कर अब
नशा के मकड़जाल में फंस कर अब
Paras Nath Jha
"हकीकत"
Dr. Kishan tandon kranti
पाकर तुझको हम जिन्दगी का हर गम भुला बैठे है।
पाकर तुझको हम जिन्दगी का हर गम भुला बैठे है।
Taj Mohammad
बहुत समय हो गया, मैं कल आया,
बहुत समय हो गया, मैं कल आया,
पूर्वार्थ
आया तेरे दर पर बेटा माँ
आया तेरे दर पर बेटा माँ
Basant Bhagawan Roy
दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
Rituraj shivem verma
जब कभी आपसी बहस के बाद तुम्हें लगता हो,
जब कभी आपसी बहस के बाद तुम्हें लगता हो,
Ajit Kumar "Karn"
😊पर्व विशेष😊
😊पर्व विशेष😊
*प्रणय*
*हिंदी मेरे देश की जुबान है*
*हिंदी मेरे देश की जुबान है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Loading...