ज्ञान का भ्रम
जो अज्ञानी व्यक्ति है वह ज्ञानवान व्यक्ति का शत्रु नहीं हो सकता बल्कि जो ज्ञान होने का दिखावा करता है कि मै ज्ञानी हूँ उसका यह भ्रम ही उसके ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु है क्योंकि इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो संसार के ज्ञान रुपी सागर को अपने मन मस्तिष्क में पूर्णतः समाहित कर ले जबकि इस सत्य को नकारते हुए कुछ लोग अपने आप को पूर्ण ज्ञानी मानते हैं और यह भ्रम उनमें इस तरह व्याप्त हो जाता है कि वे जीवन की हर नकारात्मकता को ही सत्य की कसौटी पर कसने का हर असफल प्रयास करते रहते हैं ।
कहने का आशय यह है कि ऐंसे लोग केवल हवाई किले बनाते रहते हैं , चलते हुए स्थिर हो जाते हैं और अचल होते हुए यात्राएँ करते हैं यानि अनवरत आशंकाओं मेंं जीना इनकी आदत और नियति बन जाती है ।
ये लोग अपने आप को ही अंतिम सत्य मानकर चलते हैं इस कारण इनका स्वभाव निरंतर अहंकार की वृद्धि करता जाता है और धीरे धीरे समाज से कटते चले जाते हैं परंतु ये अपने भीतर कभी नहीं झांकते उल्टे समाज को ही दोषी ठहराते हैं ।
ऐंसे लोगों मेंं सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने रावण है जो स्वयं ही अपने आप को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा ज्ञानी मानता था और यह भ्रम उसे समग्र जीवन रहा फलस्वरूप इस भ्रांत धारणा के कारण उसके जीवन में छद्म अहंकार ने प्रवेश कर अपना उत्तरोत्तर विकास किया और यह अहंकार ही उसके पतन एवं विनाश का कारण बना ।
इसलिए वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का यह कथन कि ” ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान नहीं, बल्कि ज्ञान होने का भ्रम है ”
अपने आप में सही एवं प्रमाणित कथन है ।