जो वंदे मातरम गा नहीं सकते
जिसको मेरा हिन्द पसन्द नहीं, वो साला गद्दार है
जो बंदेमातरम गा नहीं सकते ,वो सुवर मक्कार है
जो देते इनका साथ उनके लिये कह दें हम कवि
खाते इस देश की पैदा करते धर्म की ये दीवार है
सौ बात की एक बात कान खोल के सुनले सभी
होता गृहयुद्ध तो होने दो हमारी क़लम तलवार है
हमारी क़लम सोया देश जगा देगी सुनलो यारोँ
भारत माता की जय बोलेंगे भारत की जयकार है
जिसको पाक पसन्द हो सब्सीडी छोड़ो हिन्द की
जाओ पाक गर यहाँ पर परेशान तुम्हारे परिवार है
गर हिन्द में रहना है अब्दुल कलाम,हामिद बनो
स्वागत तुम्हारा हरदम झुकेगा सर ये हर बार है
कहता कवि अशोक सपड़ा हमदर्द आँखें खोलो
देखों पडोसी को कितना चढ़ा दिमागी बुख़ार है
पत्थरों का जवाब यूँ ईंट से देना सीख लो तुम
कहा तक सुरक्षा करेंगे देश के यहाँ पहरेदार है
अशोक सपड़ा हमदर्द