जो रूठ गए तुमसे, तो क्या मना पाओगे, ज़ख्मों पर हमारे मरहम लगा पाओगे?
जो रूठ गए तुमसे, तो क्या मना पाओगे,
ज़ख्मों पर हमारे मरहम लगा पाओगे?
पलों से नहीं, सदियों से जोड़ा है तुम्हें,
वक़्त की आँच में, मेरे साथ जल पाओगे?
ख़ामोशी की चादर में सिसकते है, जो एहसास,
उन एहसासों की सदा, बिना कहे सुन पाओगे?
ये सफ़ेद कोहरे जो, अंधेरों से भी गहरे से लगते है,
नाउम्मीदी के इस आलम में, चिराग़ रौशन कर पाओगे?
टूट कर बेपरवाहगी की राह, के कारवां को चुना है,
इस सफ़र में मेरे क़दमों से कदम मिला पाओगे?
अब तो डर, अपनी परछाई से भी लगता है मुझे,
तपिश में धूप की, क्या तुम भी छोड़ जाओगे?
रेत की तरह फिसले हैं, हाथों से हर ख़्वाब मेरे,
कोरे हाथों की खुशबू, साँसों में बसा पाओगे?
धड़कने से पहले, बिखरे हैं जज़्बात गहराईयों में कहीं,
वैसे समंदर की गहराई की शाम में ढल पाओगे?
जिन नज़रों से ठगा बैठा है, ज़माना सारा,
सहमी रूह की उस सादगी से, रिश्ता निभा पाओगे?
अधूरे क़िस्सों की किताब का पन्ना बन सिमटा है जो,
क्या उस कहानी को, कभी मंज़िल से मिला पाओगे?