जो रास्ता!
जो रास्ता आ रहा था मेरी ओर
उस रास्तें पर कोई नहीं आता
सब के अपने रास्तें और मंजिल
कहने और सुनने की बातें अलग
सत्य है कि हमारे रास्तें डगमग
ऊबड़-खाबड़,संकीर्ण अनिर्मित
पहुँच नहीं पाता कोई चलकर
या डर अस्तित्व मिटने का
या हमें ही हाँका जा रहा है
बातों के बहानें और क्या!
सिमट गयें सब रास्तें अब
न शेष कोई पदचिह्न!