जो भी सोचता हूँ मैं तेरे बारे में
मैं जब भी सोचता हूँ ,
अपनी इस हालत को देखकर,
अपने नसीब की दुर्गति को देखकर,
सोचता हूँ कहीं तेरे साथ भी,
ऐसा तो नहीं हो रहा है,
जैसा कि मेरे साथ हो रहा है।
खुले आकाश तले सोचता हूँ,
मैं भी पँख लगाकर,
इस खुले आकाश में उडूं ,
लेकिन वह पँख मेरे पास नहीं है,
कहीं तू भी कैद तो नहीं पिंजरे में,
मजबूरी मानकर मेरी तरहां।
कल तक जो अरमान थे,
मेरी इन आँखों में,
आज वो दफ़न हो गये हैं,
इस मिट्टी में मुफलिसी से,
कहीं तेरी आशाएँ तो नहीं टूटी है,
मेरी तरहां इस संसार में,
अपने परिवार में।
मैं छटपटाता रहता हूँ हर वक़्त,
बहाता रहता हूँ अपने आँसू ,
छुपकर अकेले में,
इस गरीबी की मार से,
कहीं तू तो नहीं बहाता अपने आँसू ,
मेरी तरहां अकेले में,
लेकिन कह नहीं पाता हूँ ,
मैं यह सब किसी से,
जो भी सोचता हूँ मैं तेरे बारे में।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)