जो बोवोगे सो काटोगे
कविता
मैं नहीं सिखाता कभी किसी को ,
पत्नी भक्त कहाओ मत |
मैं कभी नहीं कहता प्यारे,
पत्नी के चरण दबाओ मत ||
पत्नी कहती है तो जाकर ,
खींचो बाहर ठेला गाड़ी |
पत्नी कहती है तो घर में,
फींचो उसकी साया साड़ी||
निज जन्म भूमि को तज कर वह,
तेरे घर में जब आई है |
वह थक जाती तो उसकी सेवा ,
करना कहाँ बुराई है ||
हँस-हँस कर करे इशारा तो ,
झाड़ू भी आप लगा देना |बर्तन भी धोना खुशी-खुशी ,
भोजन भी कभी पका देना ||
पत्नी रोती है तो रोना ,
उसके हँसनें पर लेना |
निज उर में उसे बसाना तुम,
उसके उर में खुद बस लेना ||
पर याद रहे निज मात पिता को,
हरगिज भूल न जाना तुम |
उनकी सेवा खुद भी करना ,
पत्नी से भी करवाना तुम ||
यदि मात पिता को जिंदा पर ,
तुम पानी नहीं पिलाओगे |
तब ध्यान रहे तुम भी पानी ,
मरणोपरांत ही पाओगे ||तेरा विचार घर के बुजुर्ग को ,
वृद्धाश्रम पहुँचाना है |
तब भूल न जाना तुमको भी कल,
वृद्धाश्रम में जाना है ||
मेरे प्यारे निज खेतों में गर ,
तुम बबूल उपजाओगे |
कर लो विचार तब स्वयं रसीले ,
आम कहाँ से खाओगे |
इस धरती पर निज मात-पिता का,
है तुम पर उपकार बहुत |
उस मात-पिता से पाए हो,
बचपन से अब तक प्यार बहुत ||
माता से बढ़कर दुनिया में,
हितकारी और न कोई है ||
मेरे भैया नौ माह कोख में ,
माँ ही तुझको ढोई है ||
तुम याद करो माँ तुम्हें दुखित ,
जब भी देखी है रोई है|
माँ तुझे खिलाकर खाई है,
माँ तुझे सुलाकर सोई है ||
फिर बात पिता की आती है,
तो भाई पिता निराले हैं |
सोचो मन में कितनी कठिनाई ,
से वे तुमको पाले हैं |सिर पर परिजन का बोझ उठाकर ,
कहाँ – कहाँ तक भटके हैं |
खुद टूट गए हैं फिर भी बोझा,
कहीं नहीं वे पटके हैं ||
पर आज बुजुर्ग हुए हैं तो ,
निज तन ढोना ही भारी है |
कल तक उपकार किए थे वे,
भाई अब तेरी बारी है ||कल तक वे ढोते थे तुझको,
तो आज तुझे भी ढोना है |
अब उन्हें खिलाकर खाना है,
अब उन्हें सुला कर सोना है ||
हे औलादों तुम अंत समय में ,
असली साथी बन जाओ |
तन, मन, धन से तुम बूढ़े मात,
-पिता की लाठी बन जाओ ||
ऐसा करके भाई मेरे ,
तुम जग में पुण्य कमाओगे |
फिर स्वयं बुढ़ौती में इसका फल ,
निज बच्चों से पाओगे ||
आशा है अवधू की अरजी को ,
कभी नहीं तुम छाँटोगे |
सीधा प्रमाण है दुनिया में,
जो बोवोगे सो काटोगे ||
अवध किशोर ‘अवधू’
ग्राम- बरवाँ (रकबा राजा)
पोस्ट -लक्ष्मीपुर बाबू
जनपद -कुशीनगर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर 9918854285