जो छूट गए सो छूट गए।
कहां ढूंढे और कैसे मनाए उन्हें,
कुछ बिछड़ गए कुछ रूठ गए ,
ज़िंदगी नाम है आगे बढ़ने का,
जो छूट गए सो छूट गए,
जो हिस्सा थे रोज़ की बातों का,
जाने अचानक वो किधर गए,
कहां मिलते हैं फिर वो वक्त-ओ-लम्हात,
जो गुज़र गए सो गुज़र गए,
कुछ यादों से जुड़े जज़्बात,
यूं ही दिल में फूट गए,
क्या जोड़ें उन रिश्तों के नाज़ुक धागे,
जो टूट गए सो टूट गए,
रिश्ते गंवा के क्या हासिल हुआ,
जो चंद जिरहों को जीत गए,
उन किस्सों को अब क्या दोहराइए “अंबर”
जो बीत गए सो बीत गए।
कवि-अंबर श्रीवास्तव