जो चले …
जो चले रहें बदलकर
मंजिलों को ढूंढते ।
उनको मंजिल न मिले
अनुभव मिलेगा ।।
किस तरह कोमल
कुसुम पथ को सजाते
और फिर उन पर
मृदुल कलियां बिछाते
दूसरों के लिए जो सुख
त्याग देते ।
उनका जीवन फूल
सा निश्चित खिलेगा ।।
कंटकों के शर भी कैंसे
मार्ग की बाधा बनेगें ।
जो अकारण ले बुराई
सामने आकर तनेंगे ।।
बच न पाएंगे प्रकृति
के कोप से ये ।
आंधियों में सकल तरु
नीचे गिरेगा ।।
सुख और दुख में जिसका
मन धीरज गहे ।
सफलता की कहानी
जो नित कहे ।।
सत्य के जो मार्ग को
छोड़े कभी ना ।
ध्येय को वह एक दिन
पाकर रहेगा ।।
– सतीश शर्मा, नरसिंहपुर
मध्यप्रदेश