जो गगन जल थल में है सुख धाम है।
ग़ज़ल
2122/2122/212
जो गगन जल थल में है सुख धाम है।
जो रमा कण कण में वो ही राम है।
जन्म जो देता है सबको पालता,
परम पावन वो प्रभू अभिराम है।
चाॅंद सूरज तारे या हो रात दिन,
उसकी मर्जी से ही सुब्हो शाम है।
कर भला तो होगा तेरा भी भला,
हर भलाई का मिला ईनाम है।
हे प्रभू कुछ तो करो कलियुग में अब,
हर तरफ नारी का कत्लेआम है।
मुझको बेकल देख वो खुद आ गई,
दर्दे दिल में अब मेरे आराम है।
राब्ता प्रेमी का है बस प्रेम से,
प्यार लेना और देना काम है।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी