” जो कुछ कहूँगा सच कहूँगा …….सच के सिवा …कुछ नहीं कहूँगा “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल”
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हम ही नहीं सारे बौद्धिक विचारधारा वाले व्यक्तिओं को कहते सूना है कि प्रशंसा और आलोचना हमारी अभिव्यक्ति के दोनों हाथ हैं ! एक कभी उग्र लक्ष्मण बन जाता है तो ,दूसरा शांत ,स्थिर ,विनम्र पुरुषोतम राम दिखने लगता है ! …दिल को तस्सली देने की बातें होती है तो कहते है ” निंदक नियरे राखिये ,आंगन कुटी छवाए ! बिन पानी …….” पर कुछ बातों को सहज बनाने के लिए हम सदिओं से मुखोटों के पीछे चुप जाते हैं ! हम भ्रम जाल में फंसे रहते हैं और आने वाली पिदिओं को गलत सन्देश देते हैं ! …इन संदेशों के वावजूद भी सबको भलीभांति ज्ञात है कि प्रशंसा के बोल मधुर होते हैं और आलोचना और शिकायतें कर्कश …….छोटे से छोटा बालक भी प्रशंसा सुनना चाहता है…..आलोचना करके तो देखें ? बच्चों को डिक्टेशन करबा कर कम मार्क्स या गलत रिमार्क दे देना आप आफत मोल ले लेंगे !….. पत्नी के व्यंजनों की आलोचना हमको महंगा लगने लगता है ! उनके श्रृंगारों की प्रशंसा से आपकी आरती उतारी जाएगी !…. हम अपने सहयोगिओं का मनोबल सकारात्मक बोलों से ही बड़ा सकते हैं !……हम भी प्यासे हैं आपके स्नेहों के …..हम भी कुछ लिखते हैं ..हमें भी चाहत रहती है कि अच्छा रिमार्क दे ….अच्छा नंबर दे ! इसलिए अपनी कॉपी को आपके पास भेजता हूँ !…हम नाटकीय रूप धारण क्यों ना कर लें पर सत्य तो सत्य होता है !…और हम ह्रदय पर हाथ रख कर कहते हैं ….जो कुछ कहूँगा सच कहूँगा …….सच के सिवा …कुछ नहीं कहूँगा !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल”