जो कहोगे-जो करोगे वापिस मिलेगा सौ-गुना
खुद के बनाए ज़ाल में यूँ उलझकर रह गए
दर्द सारे दिल के मेरे अश्क बनकर बह गए
हम खड़े रह भी गए घाट पर तो क्या हुआ
वक्त की रफ़्तार में तो दरिया सारे बह गए
हमने सीखा ना सिखाया बुजुर्गों की छाँव में
अब तलक छत वो रहे फिर खंडहर-से ढह गए
पंछियों ने सीख ली माँ-बाप से अठखेलियाँ
मूढ़ थे हम बेकदर माँ-बाप फिर भी सह गए
जो कहोगे-जो करोगे वापिस मिलेगा सौ-गुना
क्या मिला, सोंचो जरा, क्या बिजते रह गए?
@आनंद बिहारी