जो अंदर है , वह बाहर दिखता कहां है पहले से खत आशिक लिखता कहां है,
जो अंदर है , वह बाहर दिखता कहां है पहले से खत आशिक लिखता कहां है,
जिन कीमतों पर ठगे गए थे हम कभी
उन कीमतों पर प्यार बिकता कहां है ||
कवि दीपक सरल
जो अंदर है , वह बाहर दिखता कहां है पहले से खत आशिक लिखता कहां है,
जिन कीमतों पर ठगे गए थे हम कभी
उन कीमतों पर प्यार बिकता कहां है ||
कवि दीपक सरल