जोड़ो कान्हा स॔ग प्रीत
है जीवन
क्षणभंगुर
कर लो
कान्हा से प्रीत
तर जायेगा
जीवन ये
प्रीत बिन
जीवन है अधूरा
देती है प्रीत
माता की
शीतल छाया
धागा स्नेह सा
बहनिया का
देता है
प्यार की छाया
बन राधा
दीवानी
घूमी
दर दर
वृन्दावन
मिली उसे
तब ही जीत
जब जुड़ी
उसकी
कान्हा से प्रीत
बनाया
कान्हा ने
जग को
मतवाला
बस हुआ
वही धन्य
जीवन में
जिसने जोड़ी
कान्हा से प्रीत
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल