जै बेरा होता अंजाम (हरियाणवी)
जै बेरा होता अंजाम मन्नै तो मोहब्बत ना करती,
एक एक पल म्ह मैं सौ सौ बार हरगज ना मरती।
अनजान बनी रहती तेरे तै सारी उम्र दुनिया म्ह,
पर तेरी यादां म्ह आज की ज्यूँ आहें ना भरती।
आज बी याद स मन्नै वो कोलेज कै दिन बावले,
उन दिनां की मेरे चाह कै बी कदे भूल ना पड़ती।
तेरी सारी निशानियाँ जला कै बहा दी बरसात म्ह,
पर दिल म्ह बसी तेरी मोहब्बत कदे ना लिकड़ती।
आज बी न्यू लागै जा स जणु इबै तू आवैगा आड़े,
ला कै छाती कै आपणै कहवैगा क्यूँ ना तू मिलती।
पर बेरा स तू कोणी आवै यू मेरे दिल का बहम स,
साच कहूँ तेरे तै प्यार करण की होगी मेरे प गलती।
तन्नै तो सिर्फ मेरा जिस्म चाहिए था खेलन खातर,
मन्नै नहीं सौंपा जिस्म तेरे रही याहे बात अखरती।
तू सोचै था झूठी मोहब्बत म्ह फायदा ठा लूँगा मैं,
वा स जात लुगाई की रह ज्यागी उंए हाथ मलती।
पर झूठ साच ना पिछाण सकूँ इतनी बी बावली ना,
सुलक्षणा की कलम बंदूक रहवै स आग उगलती।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत