#ग़ज़ल-30
तूने नज़र नमी क्यों खोई नहीं है
लगता जगी रही तू सोई नहीं है/1
करके गुनाह समझे है वो खुदी को
जैसे शरीफ़ उनसा कोई नहीं है/2
हँसते हुए कभी थकते वो कहाँ हैं
पर पल नहीं कि रुह ये रोई नहीं है/3
करते सलाम गुज़रें हैं हर किसी को
नफ़रत निगाह में इक बोई नहीं है/4
सज़दा किया खुशी हर बाँटी जहां में
धड़कन ग़रूर की संजोई नहीं है/5
पूछे सवाल वो ही जो सीखता था
कल का हिसाब किस्सा गोई नहीं है/6
प्रीतम अजीज़ है तू भूला नहीं हूँ
भूला गुबार दिल से धोई नहीं है/7
-आर.एस.’प्रीतम’