फितरती फलसफा
जैसी दिखती है ये दुनिया…..
दुनिया की फितरत तो नही !
दुनिया बहाए प्रेम दिलों में
ऐसी उफनती नफरत तो नही !
लिखती कामयाबी सबकी
इक तेरी ही हसरत तो नही !
सीखा देती है ये भला-बुरा
इससे बड़ी नसीहत तो नही !
जैसा दिखता है ये जमाना…..
जमाने की फितरत तो नही !
जमाने संग होता है चलना
जमाने से ही रुखसत तो नही !
पुराने का जाना नये का आना
जमाने की नई हरकत तो नही !
जमाने से गुम हो भी जाए खूबीयां
गुम होने वाली शराफत तो नही !
जैसे दिखते है ये सारे लोग……
ऐसी लोगों की फितरत तो नही !
करते सब काम मिल-जुल के
जो अकेले की बरकत तो नही !
पास आते सुख-दुख में लोग
इससे बड़ी शिरकत तो नही !
तेरी नादानीयों को है बताते
अब ये कोई शिकायत तो नही !
जैसी भी दिखती हो तुम….
वैसी तेरी फितरत तो नही !
माना कि हो तुम सुंदर बहुत
तन,मन से खूबसूरत तो नही !
मिलने को और प्रेम करने को
दिल देखो,सूरत मुहरत तो नही !
यूं तुम्हें सच्चे दिल से चाहना
अब ये कोई शरारत तो नही !
जैसा भी दिखता हूं मैं……
वैसी मेरी फितरत तो नही !
मेरे हाथ ही है मेरा मुकद्दर
ये माथे की किस्मत तो नही !
कोई कहे राम, तो कोई रहीम
मुझे कतई भी जहमत तो नही !
छोड़ सकता आसमानी ऊंचाई
पर ये जमीनी हकीकत तो नही !
न हो पसंद मशविरा-मोहब्बत
मुझे पे कोई इनायत तो नही !
ना ही फितुर ना ही फिजूल
फरेबी की फितरत तो नही !
फर्ज निभाने की आदत से
कोई बड़ी इबादत तो नही !
सच कहता हूं मेरे में फर्ज से
फिरने की फितरत तो नही !
~०~
मौलिक एंव स्वरचित: कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या-१४: मई,२०२४©जीवनसवारो